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लेखनी ,# कहानीकार प्रतियोगिता # -01-Jul-2023 मेरा बाप मेरा दुश्मन भाग 13

  

                मेरा बाप मेरा दुश्मन  ( भाग 13 )


           विक्रम के जाने के बाद रात को रमला को विक्रम का मासूम चेहरा नजर आरहा था। उसको कभी उस चेहरे पर  तरस आ रहा था कभी हसी आ रही थी। तो कभी  प्यार भी आ रहा था। रमला का दिल पहली बार किसी के लिए  धड़क रहा था।

       रमला का दिल आज तक किसी के लिए नही धड़का था।


  आज तक वह अपनी मस्ती में जी रही थी। वह मस्त जिन्दगी जीना चाहती थी। वह केवल मस्त रहना सीखी थी। ऐसा उसको परिस्थितिकी ने बना दिया था।

     रमला को बचपन में केवल अपने पापा का थोडा़सा प्यार मिला था माँ का प्यार तो मिला ही नही था। क्यौ उसने अपनी  माँ  को हमेशा  अपने से दूर ही पाया था ।


     इन्ही कारणौ की बजह से वह गलत रास्ते पर च़लने को मजबूर हो रही थी।


     विशाल हमेशा आफिस से लेट आता था जबतक वह आता रमला सो जाती थी। छुट्टी वाले दिन वह दूसरे कार्यौ मे ब्यस्त हो जाता था।


    इन सब बातौ से उसका दिल किसी के प्यार के लिए धड़का ही नही। उसके साथी भी ऐसे ही माहौल से आये थे उनके मा बाप के पास पैसा तो था लेकिन अपने बच्चौ के लिए समय नहीं था। वह हमेशा नौकरौ के आधीन रहते थे। जैसा मिला बैसा खालिया ।


       इसीलिए वह एसा ग्रूप खोजते है जहाँ शान्ति हो और वह गलत राह का चुनाव कर लेते है।


      रमला का कालेज का जो ग्रुप था वह सभी इसीतरह के थे। जब आज रमला को किसीने सीधे प्यार का आफर दिया तब उसे हसी आई थी। क्यौकि उसने इस डगर पर चलने के लिए कभी सोचा ही नहीं था।


      आज रमला के दिल में भी कुछ कुछ होने लगा था। वह पूरी रात विक्रम के बिषय में ही सोचती रही। क्या वह सच में प्यार करता है अथवा दूसरे लड़कौ की तरह दिखावा कर रहा था।


      रमला की आँखौ के सामने उसकी दूसरी तस्वीर नजर आई जो बहुत मासूम थी।


    रमला का मस्तिष्क चकराया और आवाज आई यह प्यार केवल हवस तक सीमित होती है यह सब दिखावा है जो शारीरिक सम्बन्धौ तक सीमित होते है़।


   पुनः उसे अपनी मम्मी व पापा के प्यार की कहानी याद आने लगी। उन दौनौ ने तो प्यार के लिए सभी रिश्ते नाते तोड़ दिये थे।


   रमला सोचने लगी इस प्यार में ऐसा क्या होता है कि प्यार करने वाले उन अपनौ को भी छोड़कर चले जाते है जिन्हौने अपने सभी सुख सुबिधा को भूलकर उनको पाला है।


       विक्रम दो दिन तक रमला के घर नही आया। रमला उससे मिलने को बेचैन थी। लेकिन वह अपने दिल की बात किसी को बता भी नहीं सकती थी। क्यौकि उसे डर था कि उसकी सौतेली माँ उसकी मजाक न बनाले।


       जब विक्रम दो दिन तक नहीं आया तब सारिका को अपना प्लान फ्लाप होता नजर आ रहा था

           

सारिका ने सलौनी को फोन करते हुए बोला," सलौनी वह तेरा प्यादा तो डर गया । मुझे तो ऐसा महसूस होरहा है कि तूने मुझे उसके सामने मुफ्त में नंगा करवा दिया। पैसा न जाने मिलेगा या नहीं  मालूम नहीं। तूने मेरे साथ अच्छा खेल खेला। "


     सलौनी बोली " तू तो पैसे के लिए अपना होस भी खोरही है । मेरी जान पैसा पाने के लिए मालूम नहीं कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। सब्र रख सब ठीक होजायेगा मैं उस गबरू से बात करती हूँ। "


   सारिका बोली " ठीक है जो करना है कर उसे भेज और समझा कि उसे लड़की पटाना नहीं आता है उसको यह ट्रैनिंग भी देकर भेजना।


    सलौनी  हसती हुई बोली," तू तो बहुत जल्दी पटगयी थी। वह जवान कैसा लगा। "


    सारिका बोली," जैसा तुझे लगा बैसा ही मुझे लगा।  एक दिन उसने मुझे तेरे बारे में सब बता दिया था। "


   सलौनी पूछने लगी," क्या बता दिया था?"


    सारिका बोली," ओ अब सती सावित्री मत बन । आगे की सोच मुझे सब पता है तेरे कारनामौ का । मै तुझे स्कूल टाईम से जानती हूँ।"


         "ठीक है  उससे बात करती हूँ" इतना कहकर सलौनी ने फौन काट दिया।


     सलौनी ने विक्रम को बुलाकर पूछा ," ओ गबरू तूने उस सारिका को मेरे बारे में क्या  बताया था। और तू अब उसके घर क्यौ नही गया। डर गया क्या ,? "


       "नहीं ऐसी कोई बात नही है! कल जाऊँगा।  मैने कुछ नही बताया ।",बात को बदलता हुआ बोला।


    सलौनी ने भी बात को ज्यादा नहीं बढा़ना चाहा। और बोली " कल जाकर बात आगे बढा ऐसे कैसे काम चलेगा। अगर तूने हमारी बातौ पर अम्ल नहीं किया तो तू जानता है तुझे जेल की हवा खानी पड़ेगी तेरा वीडियो तेरा भविष्य खराब कर देगा।"


            "ठीक है !" इतना कहकर वह चला गया।


  विक्रम जब सारिका से मिलने पहुचा तो उसे आया देखकर रमला बहुत प्रसन्न हुई और वह इसकी प्रतीक्षा कर रही थी कि आज वह कुछ कहे।


     सारिका ने रमला के दिल की बात जानली थी क्यौकि कुछ समय पहले उसने विक्रम के विषय में पूछा था। इसलिए सारिका उन दौनौ को अकेला छोड़कर दूर चली गयी थी।


       विक्रम ने ही बात शुरू करते हुए पूछा ," रमला मेरी उसदिन की बात पर कुछ विचार किया।"


    रमला अनजान बनते हुए बोली ," कौनसी बात ?"


          "  रमला इतनी अनजान बनकर क्यौ बना रही हो मैं आज हाँ अथवा ना में उत्तर जानना चाहता हूँ" विक्रम बोला।


       रमला बोली," देखो विक्रम मैं इस प्यार को नहीं समझती हूँ मै तुम्है जानती नहीं। पहले एक दूसरे को जानो पहचानो  फिर इन लफडौ़ मे पडो।


                      " क्रमशः" आगे की कहानी अगले भाग में पढ़िए। 

कहानीकार  प्रतियोगिता हेतु रचना।

नरेश शर्मा " पचौरी "


   







      


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3 Comments

Gunjan Kamal

14-Jul-2023 12:17 AM

👏👌

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Sushi saxena

12-Jul-2023 10:57 PM

Nice 👍🏼

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Varsha_Upadhyay

12-Jul-2023 08:41 PM

शानदार

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